विधाता छंद
मजे की बात यह जानो, बड़ा चालाक बनता है।
बहुत है धूर्त अति दूषित, बहुत नापाक लगता है।
करता काम अपना है, रखे बंदूक औरों पर।
पिलाता घूंट आंसू के, दिखाता धौंस गैरों पर।
लगाता ढेर शस्त्रों की, सदा है खोजता क्रेता।
भिड़ाता रात दिन रहता, मजा वह हर समय लेता।
सदा कमजोर का रक्षक, बना वह सोचता रहता।
किया करता सतत विक्रय,सहज वह नोचने लगता।
कहीं का छोड़ता उसको, नहीं वह पाप का भागी।
हमेशा के लिए वह तोड़, रख देता अधम दागी।
अहंकारी असुर बनकर, सतत दिन रात चलता है।
सताता निर्बलों को है, स्वयं की जेब भरता है।
प्रदर्शन ही मिशन उसका, बना दानव मचलता है।
बहुत ही क्रूर भावों में, भयंकर चाल च्लता है।
उसे शिक्षा जरूरी है, उठे कोई सजा दे दे।
समय की मांग भी यह है, पटक उसको मजा ले ले।
रचनाकार: डॉक्टर रामबली मिश्र
९८३८४५३८०१
Haaya meer
02-Nov-2022 05:38 PM
Amazing
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Muskan khan
02-Nov-2022 04:59 PM
Shandar
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Sachin dev
02-Nov-2022 04:29 PM
Nice 😊
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